मैं बेटी मायके को बड़ी प्यारी थी,
बाबा कि मैं दुलारी थी।
मेरे ब्याह का सपना बड़ा था,
मेरा दूल्हा आंखों के सामने खड़ा था।।
ससुर जिन्हें पिता मुझे मानना था,
सास जिन्हें मां सा जानना था।
मेरे पिता के समक्ष मेरा सौदा लगा रहे थे।
मेरे खुश होने की कीमत ,करीब 10 लाख बता रहे थे।।
कहा बेटा हमारा पढ़ा लिखा है और कह कर उसकी कीमत लगा रहे थे।
पिता मेरे व्याकुल थे ,इतने उपहार-वाद के बाद।
पैसे तो इतने बचेंगे नहीं कैसे होगा आगे हमारा श्राद्ध।।
फिर भी बेटी की खुशी के लिए ,अपना सब कुछ लुटा दिया।
मेरे बाबा ने लाज बचाने को, आशियाना अपना जला दिया।।
कुछ दिन ही हुए थे अभी मेरी शादी को,
पर ना जान पाई मैं आने वाली बर्बादी को।
सांस मेरी मुझे सताने लगी
पैसे लाओ मायके से यह बताने लगी।
मैं रोती गिडगिडाती
अपने पति से आस लगाती।।
उन्होंने चुप्पी लगाई थी
और ना जाने क्यों आंख मेरी भर आई थी।।
मैं पिता से कहती हाल मेरा ,वो इज्जत बचाने कहते थे।
झूठी शान के लिए ,रोज मौत से वह सहते थे।।
एक दिन मैंने कहा कि ,अब और नहीं होगा।
मेरे बाबुल में पैसों के लिए ,अब शोर नहीं होगा।।
मैं खाना बड़ा बनाती थी, हर रोज चूल्हा जलाती थी।
आज भी मैं खाना बनाने आई थी
या मेरी मौत मुझे यहां लाई थी।।
और फिर उस ज्वाला ने मुझे शिकार अपना बना लिया।
मैं झुलस गई उस आग में ,पर सच कहूं मेरे शुरू को यहां पनाह दिया।।
बस खत्म मेरी कहानी हुई मैं जल गई दहेज की आग में।
और कोई जले ना इस अनकहे से श्राप में।।
~ निकिता वत्स✍