शायर जितेंद्र सुकुमार”साहिर” की कलम से….
सब पर अपना प्यार लुटाते बाबू जी घर का सारा बोझ उठाते बाबू जी
माँ तो कभी बन भाई, बहना और दीदी कितने ही किरदार निभाते बाबू जी
हम तक कोई आँच नहीं आने देते हर उलझन से खुद लड़ जाते बाबू जी
पूरा करने अपने बच्चों के सपने दिन रात अपना खून जलाते बाबू जी
बचपन में जीत सकें सारे खेलों में अपनी जीत को हार बनाते बाबू जी
जब भी लौट आते दफ़्तर से घर साहिर पहला निवाला हमको खिलाते बाबू जी