मुझे मालूम है मैं बेहशी दरिंदा हु
कलम में सियाही की जगह दर्द भरता हु
मैं लिखता नहीं..
बहुत कम लिखता हु…
मुझे मलूम है मैं बेहशी दरिंदा हु
कलम में सियाही की जगह दर्द भरता हु
कागज पे दिल के दर्द-ओ-गम की जगह ज़ख्म बनाता हुआ…
मैं लिखता नहीं
बहुत कम लिखता हु…
मैं जब भी लिखता हूं बे-खौफ लिखता हूं
जो सच होता है वही लिखता हु…
मैं लिखता नहीं..
बहुत कम लिखता हु..
बेवफाओ के किस्से सरेआम लिखता हूं
जलीमों के ज़ुल्म लिखता हु
धोकेवाज़ो के दिए हुए धोके लिखता हूं
जो अपना बना के ज़ख्म देते हैं उनके नाम लिखता हूं…
मैं लिखता नहीं…
बहुत कम लिखता हु..
अपना होने के दावा करने बालो के दावे लिखता हूं…
मुनाफिको के झूठे वादे लिखता हु..
झूठी कसमें झूठी बातें लिखता हूँ..
झूठे लोगो की सच्चाई लिखता हूँ…
में लिखता नही
बहुत कम लिखता हु…!
write by
#Mohd_Husain