बाहर की साइकिल भी पल्सर होती है
घर की मुर्गी…….दाल बराबर होती है
गर्भाशय में पाले रघुवर से मोती
औरत रत्नफलित रत्नाकर होती है
शब्दों के अपने ही मतलब होते हैं
बहन बहन है,सिस्टर सिस्टर होती है
दुर्घटना में दिल चोटिल होता है जब
नज़रों की आपस में टक्कर होती है
अरे अभी से हार मान ली तुमने तो
तू तू मैं मैं तो स्टार्टर होती है
शक की बीमारी यदि ना हो तो,शादी
मीठी इतनी,जैसे शक्कर होती है
हज,तीरथ तो रस्म निभाई है केवल
सच्ची पूजा ढाई आखर होती है
सुंदर होती होगी रेशम की साड़ी
पर कॉटन की साड़ी सोबर होती है
ये दीगर है,तुमसे बात नहीं होती
लेकिन बात तुम्हारी अक्सर होती है
बेहतरीन होती है बहुत बड़ी दुनिया
लेकिन छोटी उससे बेहतर होती है
बाहरवाले घर तक आने लगते हैं
जब घरवाली घर के बाहर होती है
मुझको यारी की बीमारी है शायद
जिससे भी होती है,जमकर होती है
ख़ुद खाकर इतनी ख़ुश कभी नहीं होती
जितनी माँ बच्चे को खिलाकर होती है
भूमिका जैन “भूमि”